दैनिक जीवन में रसायन का उपयोग का शॉर्ट नोट्स

हेलों मेरे प्यारे दोस्तों आज हम इस आर्टिकल में हम आपको दैनिक जीवन में रसायन का उपयोग  क्या है? दैनिक जीवन में रसायन का उपयोग  का सूत्र क्या होता है तथा दैनिक जीवन में रसायन का उपयोग  के प्रकार क्या होते हैं इसके बारे में बताएंगे। इसके साथ साथ हम आपको दैनिक जीवन में रसायन का उपयोग  के उदाहरण क्या होते हैं? इसके बारे में बताएँगे। यह एक महत्वपूर्ण टॉपिक है दैनिक जीवन में रसायन का उपयोग  क्या है? इस टॉपिक के बारे में अधिकतर परीक्षाओं में प्रश्न पूछ लिए जाते हैं। इसलिए इस टॉपिक के बारे में केमिस्ट्री विषय से सम्बंधित छात्रों को पता होना अनिवार्य है।इससे पिछले आर्टिकल में हमने आपको  इसके बारे में विस्तार के साथ बताया।  एक बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक है इसलिए इस टॉपिक के बारे में आपको पता होना चाहिए।  उदाहरण के बारे में बताने वाले हैं। तो बिना किसी देरी किए सबसे पहले जानते हैं ,दैनिक जीवन में रसायन का उपयोग  क्या है?

दैनिक जीवन में रसायन (Chemistry in Everyday Life)

हमारे मानव जीवन में रसायन अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। मानव जीवन में विभिन्न प्रकार की बीमारियां उत्पन होती है तथा इन बीमारीयो को दूर करने के लिए विभिन्न औषधीयो का प्र‌योग किया जाता है अत: “वे रासायनिक पदार्थ जिनका प्रयोग रोगो के मिदान, दर्द निवारण आदि में किया जाता है , तथा जो मांसिक एवम् शारीरिक गतिविधियों के सम्यक निर्वहन संचालन में सहायक होते है औषधि (medicine)कहलाते है। विभिन्न रोगो के लिए दवाओ का समूचित कोर्स चलता है। आवश्यकता से अधिक दवा लेने पर साइड इफेक्ट भी होता है। तथा साथ – साथ किसी – किसी की एलर्जी भी होती है। अतः औषधी का प्रमुख गुण यह भी है की उसकी क्रिया स्थानीकृत होनी चाहिए जहाँ उनकी आवश्यकता है।

ज्वरनासी (Antipyretics)

वह रासायनिक पदार्थ जिनका प्रयोग उच्च ज्वर मे (fever) में ताप कम करने के लिए किया जाता हैज़्वसाथी कहलाता है।जैसे –ऐस्प्रिन , पैरासेटामॉल  etc.

इन सबो में पैरासेटामॉल श्रेष्ठ ज्वर नाशक है। ऐस्प्रिन  ज्वर नाशक तथा सुजन कम करने  की दवा के साथ साथ प्रभावकारी दर्दनाशक है। परन्तु कई लोगो को ऐस्प्रिन  से एलर्जी भी होती है अतः ऐस्प्रिन को खाली पेट नही खाना चाहिए।

दर्दनाशक (Analgesics)

 वे औषधी जो बिना वेहोशी मानसिक उलझन एवम अन्य तंत्र किये कुप्रभावों के दर्द को कम करता है। दर्दनाशक कहलाता है।

दर्दनाशक (Analgesics) दो प्रकार के होते है।

नृदाकारी दर्दनाशक (Narcotic Analgesic)

वे औषधी जिनकी सुक्ष्म मात्रा से दर्द तो कम होती हैपरंतु  साथ ही साथ नृदा (नींदा)या वेहांशी उत्पन होती है। ये मुख्यत अरवीम, उत्पाद होते है।जैसे– मॉर्फीन,कोकीन , हेरोइन

अनृदाकारी दर्दनाशक (Nonnarcotic Analgesic)

वे औषधी जो बिना बेहांशी मानसिक उलझन तथाबेहांशीके  दर्द को कम करती है। ऐस्प्रिन तथा पैरासेटामॉल अतिलोकप्रिय non-narcotic analgesic है। Novalgin , Anacin , Serene  , etc  non-narcotic analgesic है। इनके कई अन्य प्रभाव भी है। भीडा ये दर्द का तो कम करते ही है तथा साथ  ही साथ  बुखार  सूजन एवम रक्त  के थका बनने की प्रक्रिया को भी कम करती है। आजकल ऐस्प्रिन का प्रयोग Hard Attack में किया जा रहा है। अतः ऐस्प्रिन का अत्याधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योकि  यह अमाशय मेअम्ल की मात्रा को बढ़ा देता है जिससे अल्सर बने का खतरा बना रहता है।

प्रतिजैविक (Antibiotics)

Antibiotics वे रासाय‌निक पदार्थ है जो जीवित कोशिकायो से प्राप्त अथवा नीर्मित होते है। तथा सुक्ष्मजीवि की जीवन प्रक्रिया को बाधित करते है या उन्हें नष्ठ कर देते है। सर्वप्रथम 1929 ई. में आलेक्सजेंडर फ्लेमिंग नामक वैज्ञानिक ने पेंसिलिन  एंटीbiotic कि खोज की सभी दवाओ में Antibiotics  सबसे महत्वपूर्ण है। इनका  प्रयोग Bactria फ़्फुदी तथा Vines  द्वारा उतपन  संक्रमण रोगो के विरोध किया जाता है।

Antibiotics में सुक्ष्मजीवो की वृद्धि को रोकने तथा इन्हे नष्ठ कर देने की क्षमता होती है। सुक्ष्मजीवोकी वृद्धिको रोकने की क्षमता वाले प्रमुख Antibiotics Erithomxcine,tetracyline and chloromystin , etc है। जब की सुक्ष्मजीवो को नष्ट करने की क्षमता वाले प्रमुख Antibiotics ,Pencilin, Aminoglycosidic etc  है।

वृहद परास प्रतिजैविका (broad spectrum antibiotics)

 विभिन्न प्रकार के हानिकारक एव सुक्ष्मजीवोको नष्ठ करने के लिए Broad Spectrum Antibiotics का प्रयोग किया जाता है। यह एक ही साथ कई संक्रमणो का ईलाज करता है। chloroamphenical tetra cyline. Chloromystin ,etc  Broad Spectrum Antibiotics है।इन सबी में chloroamphemical श्रेष्ठ है। यह शीधारता से जठराज्ञनी में अवशोषित हो जाते है। अतः तीव्र ज्वर, टाइफाईड, सूत्र नलिका संक्रमण डायरिया मस्तिष्क काज्वर , कुकर, खाशी , etc  मे इसका प्रयोग किया जाता है।

प्रतिरोधी (Antiseptic)

वे रसायन जो सुक्ष्मजीवो को भारते हैंया उनकी वृद्धि को रोकते है, Antiseptic कहलाता है।Antiseptic जीनित उनको को हानि नहीं पहुंचाते है।प्रयोग धावो एवं कटे स्थानो आदि पर किया जाता है।

Ex :-  Dettol chlorozylind and data terpeniolका  मिश्रण Sevlon Boricacid. tinatureiodine(alconal जल से बना धोल , जिसमे  2-3% iodine रहता है।

विसंक्रामक

वे रासायन जो जीवाणुओं एवं सुक्ष्मजीवोको शीधता नष्ठ कर देता है।इनका बर्तन की सफाई घर की फर्स प्रयोग उपकारणों तथा सेंटरिंग  इत्यादि मे किया जाता है । Ex  :- Phenol Hydrogenperoxide , bleaching powder ,Superoxide

प्रतिरोधी  तथा विसंक्रामक

दोनों समानो रूपो मे भी  कार्य कर सकते है परंतु यह इनकी  साद्रता पर निर्भर करता है। कम सन्द्रता में ये विसंक्रामक हो जाते है । वास्तव में ये विसंक्रामक जीवित ऊतकों के लिए हानि पहुचता  होते है। अतः त्वचा पर प्रयुक्त नहीं किये जाते है। जैसे→phenol का 0.2%. धोल एंटीसेप्टिक का कार्य करता है ।जबकि 1% phenol धोल  विसकामक हो जाता है।

प्रतिअम्ल (Antacids)

हमारे पेट में HCl भोजन को पचाने में सहायक लेते हैं।परंतु  यदि इसकी मात्रा सामान्य से अधिक हो जाये तब पेट में अम्लीयता या गैस की शिकायत होती है, येसा आवशकता से अधिक भोजन तीखे एवं मसालेदार भोजन, तीखा रख ,तनाव डव्यादि से होता है। अतः  इसके प्रभावो को कम कसे के लिए प्रतिअम्ल  का प्रयोग किया जता है।प्रतिअम्ल मुख्य रूप से क्षारीय पदार्थ होता है। जो पेट में पहुंचकर सभी अम्ल प्रभाव को उदासीन कर देता है।Ex- Aluminium hydroxide, magnessiumhydroxide ,SodiumbiCorbonate डव्यादि महत्वपूर्ण प्रतिअम्ल है।वैसे तो प्रतिअम्ल अम्लीयता को कम करता है। प्रस्तु इसमे अम्लीयता का अस्थाई निदान नहीं हो पाता हैअत: खान-पान पर उचित देख-रेख से ही इस पर हद तक काबु  पाया जा सकता है।

प्रशांतक / उपसामक (Trainguilizers)

वे रसायन  जिनका प्रयोग मांसीक तनाव  को घटाने तथा कम करने मे बिना चेतना को परिवर्तनशील किये अर्थात बिना वेहॉश किए किया जाता है। प्रशांतक को मनो चिकित्सकीय औषधी के नाम से भी जाना जाता है। जिन Luminal, Seconal digipam  , etc

एन्टीहीस्टामीन (Antihistamine)

शरीर में एलर्जी के हुए रोगों को कम कसे के ऐन्टीहिस्टमीन  दवाओ का प्रयोग किया जाता है। वातावरण में उपस्थित धुल कण परागकण इत्यादि के कारण हमारे शरीर में एलर्जी उतपन होता है । जिससे हमारे शरीर से हिस्टामिन मुक्त होने लगता है । जिसके फलस्वरूप अत्यधिक छिक आती है। तथा नाक बहने लगता है अत: ऐसी स्थिति में ऐन्टीहिस्टमीन दवाओ का प्रयोग किया जाता है।

साबुन एंम अपमार्जक (Soap and detergent)

साबुन उच्च  वसा वाले अम्लो का सोडियम या पोटाशीयम  लवण होता है। वनस्पति तेलो एवं वसा का क्षार जल अपघटन  कराने से साबुन का निर्माण होता है। Sodiumastorate(C17H35COONa) C15H35COONa) etc  साबुन के उदाहरण है। किसी वसा का क्षार द्वार जल अपधटन कि क्रिया को साबुनीकरण कहते  है। कठोर जल के साथ साबुन अपनी वास्तविक निर्मलनी क्रिया नहीं करता है। कठोर जल में कैल्सीअम  और magnesium  के Sulphate ,chloride इत्यदि  उपस्थित रहते है। अतः जब कठोर जल के सम्पर्क में साबुन आता है तब यह लवणों से प्रतिक्रिया करता है तथा अवक्षेप बनकर  अलग हो जाता है। जब की अधुलनशीलकण कपड़ो के छिद्र में बैठ जाता है जिससे कपड़ो की सफाई नहीं हो पाती तथा साबुन की व्यर्थ ही बर्बादी होती है। अतः एसी स्थिति में अपमार्जक का प्रयोग किया जाता है।

अपमार्जक (Detergent)

अपमार्जक लम्बी श्रंखला वाले हाइड्रोकार्बन  के सल्फ़ेट या  सल्फोनट  होते है। ये साबुन की तुलना में अच्छी सफाई करते हैं। यह कठोर जल के साथ भी खूब झाग देते है तथा बेहतर सफाई क्रिया होती है। ये कैल्शीयम तथा मेग्नेशियम के साथ अघुलशील लवण नहीं बनाते हैं। परंतु  अपमार्जक जैविघटनीय नहीं होते है तथा जब प्रर्दिर्शन को बढ़ावा देते है। अत: ऐसी स्थिति मे  अपमार्जक को जैवनिम्नकरणीय बनाने के लिए हाइड्रोकार्बन श्रंखलाकों कम-से-कम रखा जाना चाहिए। जिससे जल प्रदुषण कम से कम हो सके।

अपमार्जक तीन प्रकार के होते हैं।

(1)धनायनि अपमार्जक (2) ऋणारानी  अपमार्जक (3)उदासिनी अपमार्जक

 कपड़ो की धुलाई में ऋणायनी अपमार्जक का प्रयोग किया जाता है। सेम्पु मे धनायनी अपमार्जक का प्रयोग किया जाता है जब की बर्तनों की सफाई से उदासीन अपमार्जकका प्रयोग किया जाता है।

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