हेल्लो मेरे प्यारे दोस्तों स्वागत है आपका हमारी अरविन्द सर पटना की वेवसाइट पर। आज के इस लेख में हम आपको ताँबे का निष्कर्षण क्या होता हैं? तांबा कहा से मिलता है कहा से निकाला जाता है। तांबे का प्रमुख अयस्क क्या होता है। तांबे का उपयोग क्या है। कापर का सिक्का क्यों बनाया जात है। तांबा का प्रमुख अयस्क कॉपर पराइड होता इस अयस्क द्वारा तांबे का निष्कर्षण कैसे होता है। कॉपर का संयोजकता कितना होता है।
संकेत – Cu
परमाणु संख्या – 29
द्रव्यमान संख्या – 63.5
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास – 4s2 3d10
समूह संख्या – 3 या IB
आवर्त संख्या – 4
ब्लॉक – d
संयोजकता – 1 या 2
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********** महत्वपूर्ण अयस्क **********
कॉपर प्रकृति में स्वतंत्र तथा संयुक्त दोनों अवस्थाओं में पाया जाता है। कॉपर का अयस्क सल्फाइड एवं कार्बोनेट के रूप में मिलते हैं:-
कॉपर का महत्पूर्ण अयस्क निम्नलिखित है:-
(i) कॉपर पाइराइट -CuFeS2
(ii) कॉपर गलांस- Cu2S
(iii) मैलाकाइट- CuCO3.Ca(OH)2
इन सबों में कापर का प्रमुख अयस्क कॉपर पाइराइट है इस अयस्क द्वारा कापर का निष्कर्षण बड़े पैमाने में किया जाता है कॉपर पाइराइट अयस्क से कम खर्च में धातु का निसकर्षण आसानी से हो जाता है ।
कॉपर पाइराइट से कॉपर का निष्कर्षण
कॉपर पाइराइट से कापर का निष्कर्षण निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होता है –
कॉपर पाइराइट अयस्क का सांद्रण
इस विधि द्वारा सफाइट अयस्क का सांद्रण किया जाता है। इस विधि में सर्वप्रथम अयस्क का महीन चूर्ण कर लिया जाता है तथा इसे ही पानी से भरे एक बिकर में घुला दिया जाता है। विकर में वायु प्रवेश के लिए एक पम्प डाल दिया जाता है तथा इसमें तारपीन तेल की कुछ बूंदें डाल दी जाती है।सारी प्रक्रियाएँ पूर्ण होने के पश्चात वीकर में पम्प द्वारा हवा प्रवाहित किया जाता है। ऐसा करने से अयस्क में झाग बनने लगता है तथा सफाइट अयस्क हल्का होने के कारण झाग के साथ पर चला आता है जिसे समय पर अलग करते रहते है। झाग को सुखा लेने पर शुद्ध अयस्क का प्राप्त हो जाता है जबकि अशुद्धियां घोल में ही रह जाती है।
कॉपर पाइराइट का जारण
अब सांद्रित अयस्क को परावर्तनी भट्टी में जारित करते हैं। जारण की प्रक्रिया में अयस्क में निम्न परिवर्तन अभिक्रियाएँ होते हैंजो इस प्रकार-
जब सांद्रित अयस्क में थोडा कोक (कोयला) तथा सिलिका को मिलाकर भट्ठी में हवा की उपस्तिथि में गर्म किया जाता है | जारण के पश्चात नमी एव उडनसिल असुधिया दूर हो जाती है लोहा तथा तम्बा के आक्साइड तथा सल्फाइड का मिश्रंण प्राप्त होता है | अयस्क में अशुद्धियां ऑक्सीकृत होकर वाष्पशील ऑक्साइडों के रूप में दूर हो जाती हैं।
S + O2 → SO2
4As + 3O2 → 2As2O3
2CuFeS2 + O2 → Cu2S + 2FeS + SO2
प्रगलन
जारित अयस्क को वात्या भट्टी में कोक व सिलिका मिलाकर प्रगलन करते हैं।इसमें अनेक अभिक्रियाएं संपन होती हैं।
2FeS +3O2 → FeO +Cu2S+2 SO2
फेरस ऑक्साइड बालू (सिलिका) के साथ धातुमल बना लेता है।
FeO + SiO2 → FeSiO3
धातुमल
नोट :- माटे क्या है? कॉपर तथा आयरन सल्फाइड के मिश्रण को माटे कहा जाता है। माटे में 50% कॉपर होता है।
बेसेमरीकरण
माटे में 50% कॉपर(ताँबा) उपस्थित होता है,माटे से कॉपर प्राप्त करने के लिए बेसेमर परिवर्तक का उपयोग करते हैं। यह प्रक्रिया बेसेमरीकरण कहलाता है।यह स्टील की बनी गोलीय आकार की एक भट्टी होती है। इसमें द्रवित FeO में थोड़ी बालू मिलाकर उसे बेसेमर परिवर्तक में डाल देते हैं जिनके भीतर चूना या Mno का स्तर लगा होता है। परिवर्तक में गर्म वायु प्रवाहित करते हैं जिसमें निम्न अभिक्रिया होती हैंजो इस प्रकार है-
2FeS +3O2→2FeO +2SO2
2Cu2S +3O2 → 2Cu2O +2 SO2
क्यूप्रस ऑक्साइड, आयरन सल्फाइड से क्रिया करके Cu2S तथा FeO बनाता है एवं FeO बालू से क्रिया करके FeSiO3 धातुमल बनाता है।
Cu2O + Fes → Cu2S +FeO
FeO + SiO2 → FeSiO3 ( धातुमल )
धातुमल क्यूप्रस सल्फाइड (Cu2S) तथा क्यूप्रस ऑक्साइड (Cu2O) क्रिया करके कॉपर धातु का निर्माण करते हैं।
Cu2O + Cu2S →6Cu + SO2
इस प्रकार कॉपर(ताँबा) पेंदी में जमा हो जाता है द्रवित कॉपर को बाहर निकाल कर ठंडा करने पर इसमें घुली हुआ SO2 बुलबुलों के रूप में बाहर निकलने लगता है। जिस कारण कॉपर के ऊपर फफोले पड़ जाता हैं जिसे हमलोग फफोलेदार कॉपर (विलिस्टेर कॉपर ) के नाम से जानते है फफोलेदार कॉपर(ताँबा) में लगभग 98% शुद्ध होता है।