जैविक वर्गीकरण से क्या समझते है? विस्तार से जानें

जैविक वर्गीकरण ,जैविक वर्गीकरण से क्या समझते है?

जैविक कर्गीकरण जीवी के पोषण, प्रचलन तथा कोशिका के आकार के आधार पर दिया गया है।

(1) Two kingdom of classification:

‘लिनियस’ नामक वैज्ञानिक ने  1758 ईo  में जैविक वर्गीकरण को दो भागों में बाँटा:-

वानस्पति जगत (Botany), जन्तु जगत (Zoology)

ⅱ) Three kingdom of classification:-

 ‘इयूनेस्ट हैकेल’ (1866 ) गें उन्होने उन्होने जीवित पार्थों को तीन भागों में बाँटा। उन्होंने एक नया  किंगडम (जगत) बनाया जिसमें उत्तक का निर्माण नहीं होता था।

प्रोरिस्टा  (Protista ),वानस्पति जगत (Botany  Kingdom)

जन्तु जगत (zoologyKingdom)

(ii) four kingdom of classification:

कोपलैण्ड’ (1956) ने प्रोटिस्य को दो भाग में बाँटा। इसका आधार प्रोकैरथोरिक तथा यूकैरयोटिक था। इन्होने एक नया किंग्डम बनाया ।

  1. मोनेरा किंगडम (Monera Kingdom)
  2. प्रोटिस्य किंगडम( protista Kingdom)
  3. वानपस्पति किंग्डम(Botany Kingdom)
  4. जन्तु किंग्डम (zoology Kingdom)
  5.  Five kingdom ofclassification:

“रि.Hwhittaker” (1969) के अनुसार जीवों को पाँच किंग्डम में बाँटा ।इन्होने पौधे का स्वपोषी  और परपोषी को ख्याल में रखकर एक नया किंग्डमfungi (कवक) का निर्माण किया।

  1. मोनेरा किंग्डम
  2. प्रोरिस्टा किंग्डम
  3. फफूँद (कवक) किंग्डम
  4. वनस्पति किंग्डम
  5. जन्तु किंग्डम

गुण तथा विशेषताएँ :-

मोनेरा किंग्डम के गुण या विशेषताओं को लिखे :-

  • यह प्रोकैरियोटिक होता है।
  • जिसके अन्र्तगत जीवाणु, माइको प्लाज्मा, साइनो-  बैक्टिरिया आता हैं |
  • यह एक – कोशिकीय, झुण्ड में तथा तन्तु नुमा होता है।
  •  इसमें अनुवंशिक पदार्थ उपस्थित होता है।
  • राइबोसोम 70 ‘s ‘ प्रकार का होता हैं ।
  •  फ्लैजिला उपस्थित हो सकता है।
  • लैंगिक प्रज्जन्न अनुपस्थित होता है।

प्रोटिस्य किण्डम (Protista kingdom):

  •  यह एक कोशिकीय और झुण्ड में होने वाला यूकैरयोरिक है।
  • यह जलीय तथा पानी के उपर तैरता रहता है।
  • इसमें प्रचलन की क्रिया फलैजिला, सीलिया तथा कूटपाद के द्वारा होता है।
  • इसमें भोज्य पदार्थ ग्लाइकोजेन तथा वसा के रूप में जमा रहता है।
  • अलैंगिक प्रज्जन्न साधारण है।
  • इसमें भ्रूण की अवस्था अनुपस्थित होती है।

फफूँद किंग्डम (fungi kingdom):-

  • यह बहुकोशिकीय यूकैरियोट्स जीवित पदार्थ है।
  • यह परपोषि होता है।
  • इसमें कोशिका भिती काइटिन या fungus सुलुलोज बना होता हैं ।
  •  इसमें भोज्य  प्रदार्थ ग्लाइकोजिन  और वसा के रूप में होता हैं ।
  • यीस्ट एक कोशिकीय फफूँद है।
  • इसमेंअलैंगिक प्रज्जन्न साधारण प्रकार के होते हैं।

 वनस्पति किंग्डम (Plant or Botany Kingdom):

  • इसमें बहुकोशिकीय होता है।
  • इसमे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती है। अर्थात्यह  स्वपोषी होता है।
  • यह जलीय और स्थलीय दोनों प्रकार के  होते हैं ।
  • इसमे वृद्धि अनियमित प्रकार से होता है।
  • इसकी कोशिका भीति सेलुलोज की बनी होती है।
  • इसमें भोज्य  पदार्थ स्टार्च (Starch) और वसा (fat ) के रूप में जमा होता है।
  •  कुछ पौधे  परपोषी तथा परजीवी भी होते है।

जन्तु किंगडम (Animals or Zoology kingdom):

  • यह बहुकोशिकीय यूकैरियोटिक जन्तु है।
  • इसमें उत्तक अंग, तथा अंगतंत्र स्तर का जंतु होता है।
  • इसमें शरीर का – अंग आंतरिक होताहै।
  •  इसमें वृद्धि नियमित प्रकार  से होती है।
  • इसमे जन्तु चलाने फिरने वाला होता हैं ।
  • यह परपोषी और परजीवि होता है।
  •  इसमें लैंगिक प्रज्जन्न होता है।
  • इसमें गैमेट्स Haploid  अवस्था में होता है।

Monera  kingdom (मोनेश जगत)

जीवाणु (Bacteria) :

  • जीवाणु सर्वव्यापी है।
  • यह हवा, पानी और मीटटी में रहता है।
  • यह पृथ्वी से लगभग 16 foot की गहराई तक मिलता है।
  • यह मनुष्य से मुख गुहा, त्वचा, आँत ,दूधफल तथा सब्जियों मे मिलता हैं ।

जीवाणु को दो भागों में बाँटा गया हैं ।

  1. आर्की-बैक्टेरिया
  2. यू-बैक्टीरिया

जीवाणु के मुख लक्षण

  • यह एक कोशिकीय अकेला था झुण्ड में पाया जाताहै।
  • इसमें कोशिका भीति होती है।
  • इसमें 70’s’ राइबोसोम पाया जाता है।
  •  इसमें  प्रज्जन्न की क्रिया विखण्डन द्वारा होती है।

जीवाणु के आकार :-

  • जीवाणु का औसत आकार 1 um सें पाँच um  (माइक्रोम) होता है। इसके आकार अलग-अलग होते है। जैसे :- कोकस 0.5um से 2.5 um, बैसिलस 1 से 15 um लंबी तथा 0.2 um से 2.0 um तक चौडा।

 जीवाणु के प्रकार (Kinds of bacteria):

जीवाणु का आकार अनेक प्रकार के होता है। जिसमे  कोकस और बैसिलस मुख्य है।

पोषण

जीवाणु में पोषण दो प्रकार से होता है :-

  1. परपोषी पोषण
  2. स्वपोषी पोषण

परपोषी पोषण :- वैसा जीवाणु जो अपना भोजन के लिए दूसरे पर आश्रित रहता है या दूसरे से लेता है परपोषी कहलाता है।

यह तीन प्रकार परजीनि के होते हैं।

  1. परजीवी
  2. मृतोपंजीति
  3. सहजीवी
  4. परजीवी :- वैसा जीवाणु जो दूसरे से भोजन लेता है। परजीवी कहलाता है।
  5. मृतोपजीवी :-वैसा जीवाणु जो मेरे हुए, सडे-गले प्रदार्थों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं , मृत्तोपजीवि कहलाते हैं।
  6. सहजीवि :-वैसाजीवाणुजो अपना भोजन किसी दूसरे से लेता है पर उसे कोई हानि नहीं पहुचता बल्कि उसे फायदा पहुँचता हैं , सहजीवी कहलाता हैं ।

स्वपोषी पोषण :-वैसा जीवाणु जो अपना भोजन स्वयं बना लेता है, वह स्वपोषी कहलाता है।

यह दो प्रकार के होते हैं:-

  1. फोटोऑटोक्रोफी जीवाणु
  2. केमोऑटोक्रोफीजीवाणु

फोटोऑटोक्रोफी जीवाणु 

  • इसमें पिगमेंट होनेके कारण यह अपना भोजन खुद बना लेता है।Ex:- ग्रीन सल्फर बैक्टीरिया, पर्पल सल्फरबैक्टीरिया नन – पर्पल सल्फर बैक्टीरिया।

केमोऑटोक्रोफी जीवाणु 

नाइट्ररी फाइनग  बैक्टीरिया :- यह जीवाणु स्वतंत्र नाइट्रोजन को नाइट्रेट के रूप में कनभर्ट (बदल) देता है। Ex :- नाइट्रोसोमोनास , ऐजेठोबैनरर

 हाइड्रोजन बैक्टीरिया :- यह हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को मिलाकर जल बनाने में सहायता करता है।

सल्फर बैक्टीरिया :-यह हाइड्रोजन सल्फाइड को हाइड्रोजन और सल्फर में तोड देता है।

आइरन वैक्टीरिया :-यह जीवाणु फेरस, यौगिक कोफेरिक यौगिक में बदल देता है।

 जीवाणु में प्रज्जन (Reproduction in bacteria)

  • जीवाणु में मुख्यतः तीन प्रकार से प्रज्जन्न की क्रिया होती है।
  • वर्धी  प्रज्जन्(vegetative Reproduction)
  • अलैगिक प्रज्जन् (Asenual Reproduction)
  • लैंगिक प्रज्जन्(Sexual Reproduction).

वर्धी प्रज्जन(vegetative Reproduction

  • Binary fission :-अनुकूल परिस्थिति में जीवाणु के केन्द्रक दो भागों मे बँट जाता है। इसके बाँद कोशिका द्रव का विभाजन होता है। जिसके फल स्वरूप दो  नया जीवाणु कोशिका का निर्माण होता है।

  • By budding :-अनुकूल परिस्थिति में जीवाणु यह Outgrowth का निर्माण करता हैं। जिसे बड़ (Bud ) कहते है। यह परिपक होकर अपने Parent (जनक) से अलग हो जाता है और स्वतंत्र जीवन यापन करता है।

अलैंगिक प्रज्जन(Asexual Reproduction)

  • By Endospore :-प्रतिकूल परिस्थिति में जीवाणु अपने उपर एक मोटी भीति’ का निर्माण करती है या बना लेती है, जिसे cyst कहते हैं। केन्द्रक विभाजित होकर spore बनाता है। जिसे Endospore कहते है। जब अनुकूल परिस्थिति आति है तो यह cyst गल जाता है नया बैक्टीरिया का निर्माण होता है।

  • By Conida :-जब कोई तन्तुमय (filamentas) जीवाणु अपने अग्र भाग सेबहुत से conidia का निर्माण करता हैं। जो spore की तरह कार्य करता है। प्रत्येक एक नया बैक्टीरिया का निर्माण करता है।

  •  By zoospore :-अनुकूल परिस्थिति में केन्द्रक कई छोटे – छोटे केन्द्रक मे बँट जाता है। जो कोशिका द्रव से घिरकर Spore का निर्माण करता है। इसमें दो जीवाणु फलेजला बन जाता हैं। जिसे zoospore कहते है।

लैगिक प्रज्जन (sexual Reproductions)

  • By Conjugation :-इस प्रक्रिया में दो अलग-अलग Strain वाले एक दूसरे के पास आता है। और एक दूसरे के विपरित outgrowth बनाता है। कुछ समय के बाद out growth गल जाता है। और tube का निर्माण करता है। जिसकी सहायता से आनुवांशिक पदार्थ: एक दूसरे में स्थानांतरित होती है। इस प्रकार दोनो अलग होकर एक नए जीवाणुका निर्माण करता है।

  • By Transformation :-आनुवंशिक पचार्थ है।DNAएक जीवाणु से दूसरे मे पहुँचता है।इसमें एक जीवाणु Capsule मे बंद रहता है। और दूसरे खुलारहता है। जब दोनों आपस मिलते है तो आनुवंशिक प्रदार्थ का आदान – प्रदान होता है। और प्रकार विभाजित होकर दो नया जीवाणु का निर्माण करता है।

  • Transduction :-एक जीवाणु कोशिका से दूसरे जीवाणु कोशिका में DNA का स्थानांतरन बैक्टेरियोफेज के द्वारा होता है। इस क्रिया को ट्रान्सडक्सन (Transduction) कहते है।

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