जैविक का आर्थिक महत्व

आर्थिक महत्व(Economical importance)

  •  जीवाणु मिट्टी के उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है।
  • यह एक अच्छा अपघटक है।
  • जो जटिल पदार्थ को अपघटित करके वातावरण में छोड देता है।
  • दूध से दही बनने में, पनीर बनने में तथा अनेक प्रकार की मिठाइयाँ बनाने मे जीवाणु का अहम भूमिका होता है।
  • औद्यौगिक उत्पादों में यह बहुत लाभदायक होता है। जैसे- शिरका बनाने मे, शराब बनाने में, जुट उधोग  में, तंबाकू उधोग  में. चाय की बनाने में ।
  • चमडे के सामान बनाने में जीवाणु का बहुत महत्व है।

 आर्कि बैक्टीरिया (Arch bacteria)

  • यह पुराना और साधारण’ कोशिकीय जीव है।
  • यह विपरित परिस्थिति में पाया जाता है, जैसे नमकीन पानी अम्लीय पानी तथा बर्फ के चट्टानो ।
  • इसकी जातियाँ गतिशिल या गतिहीन हो सकती है।
  •  यह मुख रूप से प्रोकेयोटिक होता है।

आर्कि बैक्टेरिया को कितने भागो में बाये गया

आर्कि बैक्टेरिया को तीन भागों में बाँटा गया है:-

  •  मिथेनोजिन (Methenogens) 
  • यह जन्तु के आत तथा दलदल जगहो पर पाया जाता हैं।
  • यह अनाक्सी (Anaerobic) होता हैं।
  • यह CO2 को प्रयोग करके मिथेन गैस बनाता है।
  • यह बायो गैस (Bio-gas) पौधा  में मदद करता है।

हेलोफिल्स (Halophilies)

  • यह अनॉक्सी(Anaerobic) है।
  • इसका आकार कोकस(Coccus) होता है।
  • यह खारे पानी में पाया जाता है।
  • यह परपोषी होता है।
  • हर्मोएसिडोफिल्स 
  • यह अम्लीय माध्यम में पाया जाता है।
  • यह उच्च तापक्रम को  सहन कर सकता है।
  • यह सल्फर स्प्रंग (Spring) में पाया जाता है।
  • यह ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में सल्फर को H₂S में बदल देता है।

 साइनो बैक्टीरिया (Cyano bacteria)             

  • यह अनुकूल परिस्थिति में पाया जाता है।
  • यह मीठा पानी’, खारा पानी तथा स्वतंत्र जीवि है।
  • यह एक कोशिकीय, तन्तुमय (filamentous) तथा झुण्ड में पाया जाता है।
  • इसकी लगभग 150 वंश तथा 2500 जातियाँ है।
  • इसकी सभी जाति गतिहीन होती है।
  • इसमें प्रज्जन्न  की क्रिया हेड्रोसिस्ट  के द्वारा होता है।

साइनोबैक्टीरिया का महत्व

  • कुछ साइनो बैक्टीरिया जलिय जीवों तथा मछलियों को भोजन’ के रूप में काम आते हैं।
  • कुछ  जीवाणु काँच (Glass) बनाने में, पेंट  बनाने मे, वार्निंस बनाने में, पॉलिस तथा तुथपेस्ट बनाने में काम आता है।
  • कुछ जाति,दल-दल मिट्टी को उपजाऊ मिट्टी मे बदल देता है।
  • कुछ जाति मिट्टी के उर्वश मिट्टी शक्ति बढ़ाता है।
  • कुछ जाति दवा बनाने काम आती हैं।
  • जैसे – क्लोरेला ।

साइनोबैक्टीरिया से हानि

  • यह पानी को प्रदूषित कर देता है।
  • इसकी कुछ जाति चाय की पति पर परजीवि के रूप में पाया जाता है। जिससे चाय उद्योग में बहुत घाटा होता है।

माइकोप्लाज्मा (Mycoplasama)

  • यह सुक्ष्म– जीवि मोनेरा है।
  • यह एक कोशिकीय जीवित पदार्थ है।
  • इसमें कोशिका भिति नहीं होती है।
  •  इसका आकार अनियमित होता है।
  • इसे जीवाणु जगत का जोकर कहते है।
  • यह प्लाज्मा मेम्ब्रेन के द्वारा घिरा होता है।
  •  यह झिल्ली (Membrane) लिको प्रोटीन का बना होता है ।
  •  यहा ग्राम निगेटिव होता है।
  • आनुवंशिक पदार्थ DNA और RNA होता है।
  • यह गतिहीन होता है।
  • इसमें प्रज्जन की क्रिया Binary fission के द्वारा होता है।

प्रोटिस्थ किंग्डम (Protista Kingdom)

प्रथम वर्ग (first Class)

  • क्राइस्योफाइट्स (Chrysophytes)
  • इसे गोल्डेन ब्रौन एल्गी या सौप (Soaps)कहतेहै ।
  • इसकी लगभग 200 वंश’ तव्या 10000 जातिया ज्ञात है।
  • यह मुख्यतः मीठे जल पाले जलाशय में पाया जाता है।
  • जल की कुछ जातियाँ खारे पानी में भी पाई जाती है।
  • इसका बैलस (Diploid) तथा एककोशिकीरा होता है।
  •  इसका कोशिका भिति (cell -wall) सिलिका (Silica)का बना होता है।
  • इसका कोशिका भित्ति को स्तर में बँटा होता है। बाहरीस्तर को इपिथिका (Epitheca ) जबकि मितरी स्तर को हाइकोनिका (Hypotheca) कहते है।
  • इसमें भोज्य पदार्थ बसा या (volatine) उडन-शील के रूप में जमा  रहता है।
  • इसमें क्लोरोफिल A, Cतथा फ्यूकोजैनथिन (Fucoxanthain) उपस्थित होता है।
  • इसमें प्रजन्न की  क्रिया वर्थि प्रकार , से अलैंगिक प्रकार से तथा लैंगिक प्रकार से  होता है।
  • Ex:-डायटम (Diatoms)

दूसरा वर्ग (second class)

डायनोफ्लैजलेट्स(Dino flagellates)

  • यह एककोशिकीय तथा स्वपोषी होता है।
  • यह  मुख्यतः खारा पानी में पाया जाता है।
  •  इसमें प्रचलन की क्रिया फ्लैखला द्वारा होता है। दोनों फलैजला एक दूसरे से समकोण पर जुडा होता है।
  • सेन्द्रोसोम अनुपस्थित होता है।
  • इसमें क्लोरोफिल A, B तथा फ्यूकोजैनथिन पाया जाती है।
  • यह विशैला पदार्थ सावित करता है।
  •  यह पिला, हरा, भूरा, नीला या लाल हो सकता है।
  • इसकी कुछ जातियों में फास्फोरिसेन होता है इसलिए इसे fire Algae, कहते हैं।
  • इसकी उपस्थिति के कारण जल प्रदूषित हो जाता है।

तीसरा वर्ग (Third class)

Euglenoids (यूग्लेनॉयड्स )

  • यह एक कोशिकीय और स्वपोषी जीव है।
  • यह मीठा पानी वाला जलाश्य में पाया जाता है।
  • यह फलैजला के द्वारा प्रचलन की क्रिया करता है।
  • इसमें हरित लवक उपस्थित रहता है।
  • इसमें कोशिका भीति नहीं होती है।
  • इसमें भोज्य पदार्थ पारामायलम तथा वसा के रूप में जमा होता है।
  • इसमें प्रज्जन्न की क्रिया वायनेरीफिजन तथा संजुगमन (Conjugation) क्रिया के द्वारा होता है।
  •  इसमें एक या  कभी – कभी दो प्लैजला होता है।

चतुर्थ वर्ग (Fourth  Class)

 स्लाइममोल्ड( Slime mold)

  • इसकी सभी जातियाँ परपोषी होती है।
  • इसमें कोशिका भित्ति नहीं होती है।
  • यह नमदार और छायादार जगहों पर पाया जाताहै।
  • इसमें हरित लवक नहीं होता है।
  • इसमें प्रचलन की क्रिया कुट्‌पाद के द्वारा होता है।
  • इसमें लैंगिक प्रज्जन्न आयसो गेमस अन आयसोगेमस प्रकार से होता है।

प्रोटोजोआ (protozoa)

  • इसे चार वर्गों में बाँटा  गया है।
  • ऐमेऑइड 
  • फलैजलेटेड 
  • सिलिएटेड
  • स्पोरोजोन्स

ऐमेओइड 

  • यह एक कोशिकीय और सुक्ष्म जीवि जन्तु है।
  •  यह मीठा तथा खारा पानी में पाया जाता है।
  • यह स्वतंत्र जीवि तथा परजीवि होता है।
  • यह प्रचलन की क्रिया कूटपाद की सहायता से करता है।
  • यह एक रोग देता है जिसे Dysentry (कैदस)कहते हैं।

फलैजलेटेड ( flagellated)

  • यह स्वपोषी और स्वतंत्र जीवि जंतु है।
  • इसकी कुछ जातियों परजीवि होती है।
  • यह एक रोग देता है जिसे Skeping sickness कहते हैं।
  •  इसमें हरित लवक होता है।
  • यह फ्लैजलाके द्वारा प्रचलन करता है।

सिलिटेटेड 

  • यह जलीय होता है।
  • सिलिया इसके पूरे शरीर पर पाया जाता है।
  • सिलिया केद्वारा यह प्रचलन करता है।
  • इसमेप्रज्जन्न की क्रिया बाइनेरी फिजन केद्वारा होता है।

स्पोरोजोन्स 

  • यह परजीवि होता है।
  • यह मलेरिया नामक रोग देता है।
  • यह लाल रक्त कण को नष्ट कर देता है।
  •  इसमें प्रचलन का अंग नहीं होता है।

कवक जगत (Fungi kingdom )

  • यह परपोषी होते हैं।
  • यह अचार, मुरब्बा, रोटी ,चमड़ा पर पाया जाताहै।
  • यह बहुकोशिय होता है।
  • इसमें स्पोर (spore) का निर्माण करता है।
  •  इसमें कवक (fungi) जाल होता है।

 

कवक (fungi) को चार  में बाँटा गया है।

  • फाइको माइसेट्स (Phycomycetes)
  • एस्कोमाइसेट्स (Ascomycetes)
  • वैसिडियोमाइसेट्स (Basidiomycetes).
  • ड्यूरेशेमाइसेट्स (Deuteromycetes)

फाइकोमाइसेट्स (Phycomycetes)

  • यह जलीय और स्वालीय कवक है।.
  • इसे निम्न (lower) कवक यूह (fungi) कहते हैं।
  • यह भिंगे हुए रोटी , अचार, मुरब्बा, भिंगा चमड़ा गोबर इत्यादि पर पाया जाता है।
  • इसका कवक जाल लंबा, शाखा-युक्त एसेपटेर (Aseptate) तथा Multi- nucleteहोता है।
  •  यह मुख्यतः मृत्तोप जीवि तथा परजीवि होता है।
  • इसका कोशिका भीति काइटरीन या फंगस (fungus)  सैलुलोज का बना होता है, इसमें लैंगिक प्रज्जन तीन प्रकार से होता है

ऐस्कोमाइसेट्स (Ascomycates)

  • यह कवक (fungi )का सबसे बड़ा वर्ग है।जिसमें 35000 जातियाँ ज्ञात है।
  • इसका हाइफा (hypha) लम्बा, शाखायुक्त, खंडित (septate) तथा Uninucleate होता है।
  • इसका प्रत्येक हाइफ (hypha) आपस में मिलकरकवक जाल बनाता है।
  • यह मृत्तोपजीवि  और परजीवि होता है।
  • इसका कोशिका भित्ती काइटीन या fungus cellulose का बना होता है।
  • यह सड़े-गले फल पर पाया जाता है।
  • इसमें अलैंगिक प्रज्जन्न मूकूलन (Budding)  के द्वारा या  कोनिडिया (conidia) के द्वारा होताहै।
  • इसके प्रत्येक ऐसकस (Ascus) में 4-8 एस्कोस्पोर(Ascospore) पाया जाता है।
  • इस कवक (Fungi) को खाया जाता है।
  • Ex :-   Panicillium (पेनीसिलीयम)

 वैसिडीओमाइसेट्स (Bacidiomycates) (Gills fungi)

  • इसे साधारन्तः मसख्म के नाम से जाना जाता है।
  • यह दूसरे कवक से ज्यादा विकसित होता है।
  • इसकी लगभग 25000जातिया ज्ञात है।
  •  यह एक अपघटक (decomposer) रूप में कार्य करता है। जो लकडी को अपधरित कर देता है।
  • इसमें अलैंगिक प्रज्जन्न बेसिडियम (Bacidium) के द्वारा होता है।
  • इसमें बेसिडियो स्पोर(Bacidio spore) बेसिडियम (Basiclium)के ऊपरी ऊपरी भाग पर बनता है।
  • इसमें वर्धी प्रजनन  (vegetative Reproduction) विश्वंण्डन विधि द्वारा होता है।
  • मसरूम आर्थिक रूप से अत्यधिक महंगा होता है और यह खाया जाता है। ग्टूड-स्टूल्स (poodstooles) एक प्रकार का विशैला मसरूम है।
  • इसके अखंडित बेसिडियम को होलो बेसिडियम (holoBacidium) कहते हैं।
  • यह मछली के Gills के तरह होता है इसलिए  इसे gills fungi कहते है।
  • Ex :-  Mushroom , Ustilego, पवसिमया,

ड्यूट्रोमाइसेट्स (Deutromycates)

  • इसे fungi imperfectiकहते है। क्योंकि इसमेंलैंगिक प्रज्जन्न नहीं होता है।
  •  यह कृत्रम वर्ग का कवक (fungi ) है क्योंकि इसमें सिर्फ अलैंगिक और वर्धी प्रज्जन्न होता है।
  • इसमे कवकतंतु शाखित तथा खंडित होता है।कवक वर्धि इसके कवक है होता है।
  • इसमें अलैंगिक प्रज्जन्न कोनिडिया (conidia) द्वारा होता है।
  • इसकी लगभग 17000  जातियाँ ज्ञात है।
  •  इसकी कुछ जातियाँ मृत्तोपजीवि या परजीवि होती है।
  • इसकी अधिकांश जातियों अपधटक (decomposer) होते हैं।
  • इसमें parasexual cycle उपस्थित होता है।
  • Ex :- Alternaria, Peltidium.

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