पत्ती (Leaf)
इसके निम्नलिखित विशेषताएँ है।
- यह प्रांकुर से विकसित होता हैं।
- यह तना या शाखा के गाँठ से निकलता है।
- इसकी संरचना चपटा ,गोलाकार, अंडाकार और हरा होता है।
- गाँठ पर कक्षीय कलिका, या कक्षा कली विकसित होता है।
साधारणतः पत्ती को तीन भाग मे बँटा गया है।
- पत्ती क् आधार (Leaf base )
- डंठल (petiole)
- लमिना(Lamina)
कुछ पत्तीयों के आधार खुला हुआ हाता है तो उसे पुलवीनूस (pulvinus) कहते हैं।
पत्ती के बीच मोटा भाग को भाग को मध्य शिरा अनंत भाग को सर्वोच्च तथा किनारे वाले भाग को अंतर कहते हैं।
शिरा–विन्यास (venation)
- जब नस उसे जाति के रूप में होता है। तो उसे जालिया रूपी शिरा – विन्यास (Reticulate venation) कहते है।जब नस एक -दूसरे के समांतर होती है तो इसे समान्तर शिरा विन्यास कहते है । जालिका शिरा विन्यास द्विबीज पौधा तथा समानंतर शिरा विन्याश एकबीज पौधा मे पाया जाता है ।
संयुक्त पत्ती (compound leaf)
- वैसा पत्ती जिसमें फलक (Lamina)की कटान मध्यशिरा तथा पर्णवृन्त तक की गई हो जिसमे पत्ती कई खंडों में बँट जाती है । इन खंडो पत्तर निर्माण कहते है।
संयुक्त पत्ती दो प्रकार के होते है ।
- pinnately compound
- वैसा संयुक्त पत्ती जिसमें कई पत्रक रचित के दोनों और एकांतर क्रम से या विपरीत रूप से लगे होते हैं। ये पिनाले यौगिक पत्ती कहलाता है । जैसे :- नीम
2. palmate compound leaf
- वैसा संयुक्त पत्ती जिसमें पर्णवृन्त शिरे पर उससे जुड़े जो हुए कई Leaflet लगे होते है जो एक केन्द्र बिंदु सेचारो और निकले हुए जाते हैं। उसे palmate compound leaf कहतेहै।जैसे सेमर
पर्ण विन्यास (phyllotaxy)
- तने या शाखा क्रम पर पत्तीयों एक नियमित क्रम में लगी होती है इस क्रम को पर्ण विन्यास कहते है।
यह तीन प्रकार के होते है
एकांतर (Alternate)
- इस प्रकार पर्ण विन्यास में एक गाँठ पर सिर्फ एक ही पत्ती निकलती है ये पत्तीयाँ दूसरे के एकांतर होते है ।जैसे:- सूर्यमुखी
सम्मुख (opposite )
- इस प्रकार के पर्ण विन्यास में हर एक नोड पर दो पत्तीयों निकलती है जो दोनों एक दुसरे के आमने- सामने होती हैं विपरीत पर्ण- विन्यास कहलाता है।जैसे:- अमुरुद्ध
चक्करदार (whorled )
- इस प्रकार के पर्ण – विन्यास में प्रत्येक गाँठ पर दो से अधिक पत्तियाँ निकलती है और येएक चक्कार के रूप मे सजा होता है ,उसे चक्करधार कहते है ।
पत्तीयों का रूपांतरण
- कुछ पत्तीयों रूपांतरित प्रकाश – संरलेषण के अलावा कई अन्य प्रकार की कार्य करती है । इसे पत्तीयों रूपांतरित करते है । क्योंकि यह आकार मे परिवर्तन कर लेता है ।
यह निम्नलिखित प्रकार के होते है
पर्ण संजनी (Tendril)
- कुछ पत्तीयाँ रूपांतरित संस्कार कोमल स्पींग के समान संरचना मे परिवर्तित हो जाता है । तथा यह पौधे को ऊपर चढ़ने मे मदद करताहै ।जैसे:- मटर
पत्ती रीढ़ (Leaf Spine)
- कुछ पौधो के पत्तीयों रूपांतरित होकर काटे का रूप ले लेता है । जो चड़ने वाले जानवरों से पौधा को सुरक्षा प्रदान करता है।जैसे :- नागफनी
चिपटा पौधा (Pitecha plant)
- कुछ पौधे की पत्तियाँ घड़े के आकार ले लेता हैअर्थात् यह ब्लाडर के समान दिखाई देता है । इस प्रकार के रूपांतरित पत्ती घटपर्णी में पाई जाती हैं। इस लेमीना, ढक्कन का आकार ले लेता है । जैसे :- घटपर्णी।
पुष्पक्रम (The Inflorescence)
- तने या शाखाओं परफूल के क्रम को पुष्पुक्रम कहते हैं। फूलों के सजावट को पुष्पुक्रम कहा जाता है ।
पुष्यक्रम को दो भाग बाँटा गया है।
- Racemose (असीमाक्षी) [अनियमित]
- Cymose(समीमाक्षी) [नियमित]
रेसमोस (Racemose)
- इस प्रकार के पुष्पक्रम मे मुख्यअक्ष में अनिश्चितलंबाई मे बदता है । इससे सबसे पुराना फूल निचे की और तना नये फूल ऊपर और सजा होता है । इस प्रकार के पुष्यक्रम को रेसमोस कहते है ये कई प्रकार के होता है
असीमाक्ष (Raceme)
जैसे:- सरसों
शूकी (Spicke)
जैसे:-चिरचिरी
मंजरी (Calkin)
जैसे:- शहतूत
स्थूल मंजरी (Spadix)
जैसे:- खजूर।
छत्रक(umbel)
जैसे:- चरी
मुण्डक (Head)
जैसे :-सुर्यमुखी, गेंदा
सीमाक्षी (cymose)
इस प्रकार के पुष्पक्रम मे मुख्य अक्ष निश्चित लंबाई मे बढ़ता इसमे फूल अग्रभाग में होते है । इसके शाखा पर एक या दो फूल लगे होते हैं।
फूल या पुष्प
फूल का भाग (parts of flower)
calyx (बाध्यदल पूंस) –Sepals
corolla (दलपूंग)- petals
पुमंग (Androecium)– पुंकेशर (Stamen)
जायांग (Gynoecium)– स्त्रीकेशर (carpel)
पेरिमेन्य (perianth) – tepal
परागकोष (Stamen Anther)
Connective
Filament (तन्तु )
Carpel Stigma (स्वीगमा)
Stile (स्टाइल)
ovary (अंडाशय)
इसके निम्नलिखित विशेषताएं है
- यह प्राकुर से विकसित होता है
- फूल के इंटल को पुष्पवृत कहते है ।
- जिस फूल में पुष्पवृन्त होता है , उसे डंठल कहते है । जबकि जिस फूल मे पुष्पवृन्ता अनुपस्थित होताहै । उसे सवृना कहते है।
- फूले हुए बेड़ीकल को पुष्यासन कहते है ।
- पुष्यासन (Receptacle) भी कहा जाता है।
- फूल के चार भाग होते है कैलिक्स और कोरोला सहायक अंग है। जबकि पुमंग और जायांग लैंगिकअंग है । पूमंग नर जनन अंग हैं।जबकि जायांग मादा जनन अंग हैं।
एकलिंगी फूल (unisexual)
- इस प्रकार के फूल में सिर्फ एक ही जनन अंग होता है चाहे नर या मादा
द्विलिंगी(Bisexual)
- इसमें इस प्रकारके फूल मे नर और मादा दोनों जनन होते है इसे उभयलिंगी भी कहते हैं।
सममित (Actinomorphic)
- जब फूल को किसी भी दिशा मेंउदग्र तल (vertical plane)से दो बराबर भाग मे बाँटते है। तो यह दो सामान्यभाग मेंबँट जाता है।जैसे :- सरसों, धतुरा ।
अनियमित (zygomorphic flower)
- जब फूल कोसिर्फ एकली दिशा मे उदग्र तल में बाँटा जाता है। यह दो बराबर भागों में बँट जाता है । उसे अनियमितकहते है । जैसे :- मटर, सेम ।
असंममीत (Asymmetrical)
- इस प्रकार के फूल किसी भीत लमें दो बराबर भागों में हीं बाँटा जा सकता है ।जैसे:- केना
पुरुष पत्रों के आधार पर फूल कई प्रकार के होते है ।
द्वितयी(Bimerous)
- इसमें दो पुष्प पत्र होते हैं।
त्रितयी (Trimerous)
- इसमें तीन पुष्प पत्र होते हैं।
चतुष्टयी (Te Trimerous)
पंचकी (Pentamerous)
सहपत्री (Bracteate)
- वैसा फूल जिसमें ब्रैक्टियेट उपस्थित हो ।
असहयत्री (Ebracteate)
वैसा फूल जिसमें असहयत्री अनुपस्थित हो ।
Diagram of flower
अधोजायांगी (Hypogynous)
- वैसा फूल जिसमे जायांग फूलकेसभी भाग से ऊपरहोता हैं।ऐसे फूल को अधोजायंगता कहते हैं।
उपरिवर्ती (Superior ovary)
- वैसा फूल जिसमें अंडाशय के नीचे से sepals और petals निकलता है ,ऐसे अंडाशय को श्रेष्ठ अंडाशय कहते है । जैसे:- बैंगन ,सरसों
अधीजायांग (Epigynous)
- वैसा फूल जिसमें अंडाशय के ऊपर से बाह्यदल , पखुड़िया निकलता है और यह पूरी तरह अंडाशय को ढंक लेता है । अधीजायांग कहलाता है ।
निचला अंडाशय (Inferior ovary)
- वैसा फूल अंडाशय के ऊपर उसे बाह्यदल , पखुड़िया निकलता है उसे अथोवर्ती कहते हैं।जैसे :- अमरूद।
परिजायांगी (perigynous)
- वैसा फूल जिस में अंडाशय के मध्य भाग से बाह्यदल , पखुड़िया निकल कर धेरे रहता है । परिजायांगी कहते है । जैसे :- गुलाब