पुष्पीय पादप की आकृति संपूरण जानकारी

पुष्पीय पादप की आकृति

पुष्प के भाग के इकाई (parts of flower)

  1. बाह्य दलपुंग
  2. दलपुंग
  3. पुमंग
  4. जायांग

 पराकोषी(Anther)

  1.  Stamen          
  2. Connective
  3. Filament (तन्तु)

करपेल (Carpel)      

  1. स्टीगमा (Stigma ) 
  2.  स्टाइल (style)
  3. अंडाशय (Ovary )

आकृति (morphology)

पौधों का बाहरी भाग , जड़ तना तथा पती का अधययन जीव विज्ञान के जिस शाखा मे किया जाता है , उसे आकारिकी कहते है।

जड़ (Root)

यह  मूलांकुर से विकसित होता है। वैसा जड़ जो, मूलांकुर से विक-सीत होता है। है। उसे मूसल जड़ या True root कहते है।

अपस्थानिक जड़ (Adventitious root)

वैसाल जड़ जो मूलांकर जड़ से न निकलकर पौधों के अन्य भाग तना और पती से लिकलता है।उसे अपस्थानिक जड़ कहते है।

 प्राथमिक जड़

मुलांकुर से सीधे नीचे जाने वाले जड़ को प्राथमिक जड़ कहते है।

 द्वितीयक जड़

प्राथमिक से निकला हुआ दूसरा जड़ को द्वितीयक जड़ कहते हैं।

तृतीयक जड़

द्वितीयक जड़ से निकलने वाला तीसरा जड़ को तृतीयक जड़ कहते है।

 प्रांकुर

बीज के ऊपर की- और निकलने वाला भाग को प्रांकुर कहते हैं। यह विकसित होकर तना पती फूल , फल कली तथा शाखा बनता है।

बीज दो प्रकार के होते है

मोनो कोट बीज (mono-cot seed )

वैसा बीज जिसमें एक दल होता है। जैसे :- गेहूं , धान, मक्का इत्यादि ।

 द्वि-कोट बीज (Di-cot seed)

वैसा बीज जिसमें दो दल होता है। जैसे :- दाल, सरसों , आम  इत्यादि।

 जड़ के प्रकार 

  1. मुसला जड़ (Tap root)                     
  2.  अपस्थानिक जड़(Adventitious root )

मुसला जड़ का भूमिगत रूपाचारण (modification of Roots)

  1.  तर्करूपी – मूली (Radish)
  2. कुम्मीरूपी – शलजम (Turnip)
  3. शंकरूपी(conical ) – गाजर (carrot)
  4. कन्दरुपी(Tuberous ) – गुल्लावास 

मुसला जड़ (Tap root)  के प्रकार

1. तर्कुरूपी (Fusiform)

जुड़ का वैसा रूपांतरण जो भोज्य पदार्थ को जमा करके बीच में मोटा और दोनों छोड़ धीरे- धीरे पतला हो जाता हैं। तर्कु के समान, दिखता है ।  इस तरह  के जड़ को तर्कुरूपी जड़ कहलाता है।

2. कुम्मीरूपी (Napiform)

मूसला जड़ का पदार्थ जमा करके गोलाकार हो  जाता और उसका नीचे का छोड़ अचानक पतला हो जाता है वह कुम्मीरूपी जड़ कहलाता है।

  3. शंकुरूपी (conical)

मूसला जड़ का वैसा रूपांतरण जो भोज्य पदार्थ जमा करके शंकु के आकार के रूप में परिवर्तित हो जाता है । वह  शंकुरूपी जड़ कहलाता है ।

4. कन्दरूपी (Tuberous)

मुसला जड़ का वैसा रूपांतरण जो भोज्य पदार्थ जमा करके अनियमित आकार बदल जाता है।

अपस्थानिक जड़

वैसा जड़ जो मुलांकूर से  न निकलर पौधों के अन्य भाग, तना और पती से निकलता है । वह अपस्थानिक जड़ कहलाता है ।

 1. स्तम्भ मूल (prop root)

वैसा जड़ जो तना से विकसित हो और यह रूपांतरित होकर पेड़ को यांत्रिक सहारा प्रदान करता है।

2. जटा मूल (Stilt root)

इस प्रकार के  अपस्थानिक जड़ गाँठ से निकलता है और यह पौधों को खड़ा रखने में मदद करता है।जैसे- गन्ना ( Sugar Came )

3. तन्तुमय जड़ (Fibrous root)

इस तना प्रकार के अपस्थानिक जड़ तना से गुच्छे मे  निकलता जड़ हैं।जैसे – प्याज, लहसुन (Onion)

श्वसन मूल या न्यूमैटोफोर (root Respiratory)

इस प्रकार के अपस्थानिक जड़ दलदल जगहों पर पायी जाती है।  इससे लंबा – लंबा किल दलदलीय भूमि के ऊपर निकलता है । जिससे अनेक छिद्र होते है । जो श्वसन मे सहायक होता है।

जैसे-  राइजोफोरा 

Note:- कलकत्ता के वनस्पत्ति उद्यान में 190 वर्ष पूराना बरगद का पेड है । जिससे 600  स्तम्भ मूल है । जो करीब 3500 सौ वर्ग फीट में फैला हुआ है।

जैसे- बरगद ( Banyan)

अपस्थानिक मूलों में रूपांतरण (Modification of Adventitious root)

  • prop root बरगद (Banyan)
  • Stilt root गन्ना (Sugar cane)
  • Fibrous root प्याज (onion)
  • Respiratory root राइजोफोरा (Rhizophora)

मूल क्षेत्र

1. रूट कैप (Root cap)

यह जड़ का सबसे अग्रभाग हैं। जो cap की तरफ दिखाई पड़ता है । इसलिए इसे cap root कहते है । यह मिट्टी के अंदर प्रवेश करने मे मदद करता है । इसके ठीक ऊपर  विभाज्योतवर जहाँ कोशिकाय तेजी से विभाजन करता है।

2. क्षेत्र (Elongation)

यह क्षेत्र लंबा और मुलायम होता हैं। इस क्षेत्र में root  hair अनुपस्थित होता हैं।

3. क्षेत्र (Maturation)

जड़ का यह भाग परिपक्क होता है । जिस पर अनेक root hair होता है । यह जल और खनिज लवण अवशो- सित करने में मदद करता है।

 तना (The stem)

यह प्रांकुर से विकसित होता है ।

तना में गाँठ होता है। तना इन्टर गाँठ  होता है ।

गाँठ के पास स्केल  होते हैं।

दो गाँठ (nodes) के बीच के भाग को इन्टर गाँठ कहा जाता हैं।

तना का भूमिगत रूपांतरण  (underground modification of Steams)

Rhizome – हल्दी , आदी

Bulbs  – प्याज , लहसुन

Tuber  – आलू

Corm – कन्दा , ओल

 तना का भूमिगत रूपांतरण

  • पौधे का वैसा अंग जो अपना कार्य  न करके किसी दूसरे कार्य लिए अपने  आकार और रूप मे परिवर्तन कर लेता है । उसे रूपांतरण कहते है ।

प्राकन्द Rhizome (राइजोम)

  • यह भूमिगत तना का रूपांतरण भाग हैं।इसमें Node, Intern-node होते हैं।Node के ऊपर Scale leaf तथा Apical bud उपस्थित होती हैं।यह भोज्य पदार्थ जमा करके अपने आकार को बदल देता है । Ex :- आदी , हल्दी

शल्क कन्द

  • यह भूमिगत तना का रूपांतरित भाग हैं।
  • इसमें  Dry Scale  तथा fleshy Scale पाया जात है ।
  • scales के बीच एक Buds होता हैं।
  • fleshy scale में भोज्य पदार्थ जमा होता है जो खाने योग्य होता हैं।
  • इसमें Node तथा Internode होते हैं।
  • Ex:-  प्याज , लहसून

आकन्द (Tuber )

  • यह भूमिगत तना का रूपांतरित भाग है।
  • इसके Bud node पर eye के समान bud  विकसित होता है।
  • यह भोज्य पदार्थ जामा करके अनियमीत आकार का होता है।
  • जैसे-आलू
  • इसमें Node और Inter-node होता है ।
  • corm (कॉर्म) और धनकन्द होते हैं।
  • यह भूमिगत तना का रूपांतरित भाग है।
  • यह  भोज्य पदार्थ जमा करके आकार का अनियमीत आकार का होता हैं।
  • इसके पाया जाता node पर Axillary bud पाया जाता है ।
  • इसमें Node तथा Inter-node होते हैं।

 तना के कार्य

  • इसका मुख्य कार्य शाखाओं को फैलाना ।
  • यह पती फूल और फल को धारण किए रहता है ।
  • यह पानी और खनिज लवण तथा भोज्य पदार्थ को संवहन करता है।
  • यह कार्यरिक परिवर्धन करने का कार्य करता है। (vegetative  proportion)

स्तम्भ तन्तु या संजनी(System Tendril)

  • यह  तना के नोड से निकलता है और पतला तथा कुंडलित होता है जो पौधे को ऊपर चढ़ने में सहायता प्रदान करता  है । Node और Internode पाए जाते हैं।Ex :-  खीरा (Grapes) , तरबूजा (cucumber)

काँटा (Stem spine)

  • यह तना का रूपांतरित भाग हैं जो काँटेदार होते हैं  इसमें Node  और Inter-node होते है तथा यह पौधे को पशुओ से बचाता है ।

नागफनी (cactus)

  • नागफनी का चौड़ा, मोटा पते के समान संरचना तना का रूपांतरण है। यह हरा होता है ।  यह भोज्य पदार्थ को जमा रखता है। यह प्रकाश – संश्लेषण की क्रिया में सहायक होता है ।

पती का पर्ण (The leaf)

  • तने या शाखा की चौड़ी, चपती एवं हरी पार्श्व अतिवृद्धि को  पत्ती कहते है । 

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