टिंडल प्रभाव
जिस प्रकार किसी अंधेरे कमरे में कोई प्रकाश स्रोत से प्रकाश डाला जाता है तो कमरे के अंदर धूल के कण प्रकाश में स्पष्ट दिखाई देते हैं।ठीक उसी प्रकार जब कोलाइडी विलयन में प्रकाश की किरण पुंज को गुजारा जाता है तथा सूक्ष्मदर्शी द्वारा प्रकाश के लम्बवत विलयन को देखा जाता है।तो कोलाइडी कण अंधेरे में घूमते दिखाई देते हैं।अतः इस प्रभाव का सबसे पहले वैज्ञानिक टिंडल ने अध्ययन किया, जिस कारण इसे टिंडल प्रभाव कहते हैं।इस प्रभाव के अनुसार, जब प्रकाश की किसी किरण पुंज को किसी कोलाइडी विलयन में से गुजारा जाता हैतथा प्रकाश की किरण पुंज को सूक्ष्मदर्शी द्वारा कोलाइडी विलयन के लम्बवत देखने पर प्रकाश की किरण पुंज का पथ एक चमकी ले शंकु आकृति के रूप में दिखाई देता है।जिसे टिंडल शंकु कहते हैं।एवं इस घटना को टिंडल प्रभाव कहते हैं।टिंडल प्रभाव का कारण कोलाइडी कणों द्वारा प्रकाश का प्रकीर्णन होता है।टिंडल प्रभाव कोलाइडी विलयन का एक गुण है।अगर टिंडल प्रभाव को आसान शब्दों में परिभाषित करें तो इसकी परिभाषा कुछ इस प्रकार होगी।
“कोलाइडी विलयन में उपस्थित कोलाइडी कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन की घटना को टिंडल प्रभाव कहते हैं।”
टिंडल प्रभाव की घटना को चित्र द्वारा अच्छी तरह समझा जा सकता है।प्रस्तुत चित्र में कोलाइडी विलयन में प्रकाश स्रोत (सूर्य) से प्रकाश की किरण पुंज को गुजार ने पर, जब सूक्ष्मदर्शी द्वारा प्रकाश की किरणपुंज को देखा जाता है।उसमें एक शंकु आकृति की प्रकाश की किरण दिखाई देती है।
टिंडल प्रभाव की शर्तें
टिंडल प्रभाव की घटना तभी संपन्न होती है जब ये निम्नलिखित शर्तें पूर्ण हो जाती हैं।
टिंडल प्रभाव की दो शर्तें हैं।
- परिक्षिप्त कणों का आकार प्रयुक्त प्रकाश की तरंगदैर्ध्य से कम नहीं होना चाहिए।
- परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम के अपवर्तनांकों के बीच अंतर अधिक नहीं होना चाहिए।
टिंडल प्रभाव के उदाहरण
- आकाश का नीला दिखाई देना।
- धूम्र केतु की पूंछ का दिखना।
- तारों का चमकना।
- अंधेरे कमरे में प्रकाश का चमकना आदि।
Note –वास्तविक विलयनों के द्वारा टिंडल प्रभाव को प्रदर्शितन हीं किया जा सकता है।चूंकि इनके कणों का आकार बहुत छोटा होता है।जिस कारण वास्तविक विलयन के कण प्रकाश का प्रकीर्णन नहीं करते हैं।अर्थात कोलाइडी विलयन ही टिंडल प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं।