ऊष्मागतकी का प्रथम नियम

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

ऊष्मा

ऊष्मा, ऊर्जा का ही एक रूप है तथा वह ऊर्जा विनिमय जो ताप में अन्तर के कारण होता है उसे ऊष्मा कहते हैं तथा इसे q द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

  1. ऊष्मा का प्रवाह तब ही होता है जब निकाय की अवस्था में परिवर्तन हो।
  2. ऊष्मा परिवर्तन के प्रभाव को ताप के रूप में देखा जा सकता है।
  3. ऊष्मा का प्रवाह हमेशा उच्च ताप से निम्न ताप की ओर होता है।
  4. के समान ऊष्मा भी एक बीजगणितीय राशि है अतः इसका मान भी धनात्मक या ऋणात्मक हो सकता है।
  5. जब निकाय परिवेश से ऊष्मा ग्रहण करता है तो इसे + q से तथा जब निकाय परिवेश को ऊष्मा प्रदान करता है, तो इसे -q से दर्शाया जाता है।
  6. ऊष्मा का मान निकाय के अवस्था परिवर्तन के पथ पर निर्भर करता है अतःऊष्मा अवस्था फलन नहीं है।
  7. ऊष्मा का SI मात्रक जूल (J), तथा CGs मात्रक कैलोरी ) होता है।1 Cal = 4.2 J

ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम

यह  ऊर्जा  संरक्षण का नियम है तथा यह नियम रॉबर्ट मेयर व हेल्म होल्ट्ज द्वारा दिया गया था। इस नियम के अनुसार ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है, और न ही इसे नष्ट किया जा सकता है।

यद्यपि एक प्रकार की ऊर्जा को दूसरी प्रकार की ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। इस नियम का कोई अपवाद नहीं है। ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के अन्य कथन निम्नलिखित है

  • ब्रह्माण्ड की कुल ऊर्जा निश्चित होती है अर्थात्कि सी निकाय तथा उसके परिवेश की कुल ऊर्जा स्थिर रहती है।
  • किसी प्रक्रम में यदि ऊर्जा के किसी रूप की निश्चित मात्रा लुप्त होती है तो उसके तुल्य मात्रा में ऊर्जा दूसरे रूप में उत्पन्न हो जाती है।
  • एक विलगित निकाय की ऊर्जा स्थिर होती है।

ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम का गणितीय रूप

किसी निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में वृद्धि दो प्रकार से की जा सकती है – निकाय को ऊष्मा देकर तथा निकाय पर कार्य करके।

माना कि किसी गैसीय निकाय की प्रारम्भिक अवस्था में उसकी आन्तरिक ऊर्जा U1 है, यह निकाय ऊष्मा की कुछ मात्रा (q) अवशोषित करता है तथा इस पर कार्य (w) किया जाता है। इसकी आन्तरिक ऊर्जा U2 हो जाती है। अतः निकाय की ऊर्जा में वृद्धि

U = U2– U1

तथा △U = q + w यह समीकरण ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम का गणितीय रूप है। यहाँ q तथा w अवस्था फलन नहीं है लेकिन △U एक अवस्था फलन है।

  1. जब निकाय द्वारा प्रसार कार्य किया जाता है तो

W = -P△V

अतः △U = q- p△V

या q = △U – p△V

  1. जब निकाय पर कार्य किया जाता है अर्थात् संपीडन कार्य होता है , तो

W = P△V

अतः AU = q + P△V

q = AU – P△V

  1. एक विलगित निकाय में यदि ऊष्मा या कार्य के रूप में ऊर्जा परिवर्तन न हो तब w = 0 तथा q = 0 अत : △U = 0
  2. समआयतनीय प्रक्रम के लिए △V = 0 अतः q=△U या qv= △U अर्थात् स्थिर आयतन पर निकाय द्वारा अवशोषित ऊष्मा से केवल निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है।
error: Content is protected !!
Scroll to Top